जयपत्र / श्रीनिवासी
ढमढम बजता
बज रहा है
बज रहा है ढिंढोरा डमरू
मिष्ट भाषा से बोल रहा है
पुकार रहा है
नज्म नजात नगाड़ा।
क्रम क्रम आती
धीरे धीरे
आँखों में बरसाती
खुशी वृष्टि
सुकल-उषा
निज दिल में समाइ्र है।
बाला विलित हुई
प्रलय कालकूट
दिल में नित नित फूल रहा है
रिद्धि-सिद्ध
सुखद-नंद
सहस्रांशु सुन्दर।
क्रातु बल से
प्राप्त हुए हैं विभूति वासु
निज परिश्रम ने
अन्तिम में
हमें विख्यात बनाया।
मैं हूँ, तू है
वह है, तुम हो
हम सब हैं श्रीनाम निवासी
हम सब सुख्यात श्रीनिवासी।
देखो खिलखिलाती हुई
खिल रही है
लालारुख मुस्कान
दिल भरपूर है
आँख में वसन्त है
सारे देश में
गूँज उठा है
विजय है जयपत्र।
पुरवाई में भेद छिपा है
सर्वत्र है महोत्सव
सूरीनाम में सुगन्धित है
भारतीय सन्तान।
मैं हूँ गृहस्थ
तू है कर्षक
उर्वर है देस हमारा।
वास करती है उसमें कौन?
लालारुख मुन्ना
कान्ति कामिनी प्यारी
देश की युवती
देश की प्राणाभृत ननकी
भविष्यत की माता वह है
सुघराना दीपरक
देश की आभा
देश का आदर्श
रामनी रवि पारा
मेरे देश की आशा वह है
सकल अरमान हमारा।
मैं रसिक हूँ
देशार्पित तू
सुकुमारी हमारी
मैं हूँ कृष्ण
तू है राधा
उपकारक हूँ मैं तेरा
दास बना हूँ
और तू दासी
सरनाम देश की सारे।
युग-युग ढमढम
बज रहा है
जीवन भर तो जुगजुगाती
तू है सरनाम सितारा
और मैं हूँ सरनाम कुमार।
आँख में देखो
दिल में देखो
देखो तन मन धन में
चारों ओर विजयोल्लास है
आज सरनाम देस तरंगित
मालूम क्यों कि मालूम नहीं?
महत्तम मुलाकात है
आज नव्वे वर्षों की।
तब एकमत बोलो
भाइयो बहनो
एकदस्त बोलो
डमरू नगाड़ा के साथ।
मैं हूँ तू है
वह है, तुम हो
हम सब हैं श्रीनाम निवासी
हम सब हैं श्रीनाम निवासी
हम सब हैं कुलीन प्रजा
हम सब सुख्यात निवासी।