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होली रोॅ आसरा / नवीन ठाकुर 'संधि'
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जहाँ नै जाय पारैॅ छै रवि,
वहाँ जाय छै कवि।
सोची समझी केॅ देखै छै,
जानी बुझी केॅ लिखै छै।
असंभवोॅ केॅ संभव बनाय छै,
संभवोॅ केॅ असंभव बनाय छै।
सब्भे कामोॅ के करै छै पैरबी
जहाँ नै जाय पारैॅ छै रवि।
पैसा नें आपनोॅ-पराया केॅ भूलाय छै,
प्यार मोहब्बतें नें सब्भै केॅ घुमाय छै।
पानी सें तेॅ सब्भें प्यास बुझाय छै,
ओस चाटी केॅ जैसें संतोश बुलाय छै।
जहाँ नै जाय पारैॅ छै रवि,
वहाँ जाय छै कवि।