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हाहाकार / नवीन ठाकुर 'संधि'

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दौड़तें एैलोॅ, पकड़लकोॅ दामन,
हँसते हुवें पैलकोॅ माय लेॅ भोजन।
मनों में गनै छेलै पलकोॅ में खुशी
दामन सें लोॅर पोछलकोॅ झुकी।
साजी के सम्हरी केॅ बैठलोॅ,
दुन्हूँ ने केकरोॅ लाज नै करलकोॅ।
दुन्हूँ के मिललोॅ आपनोॅ-आपनोॅ बरण,
दौड़तें एैलोॅ, पकड़लकोॅ दामन।

प्यार, ममता रोॅ माय अवतार,
हसतै छै माय नें बेटा रोॅ कपार।
एकें दोसरा-दोसरा केॅ देखै छै,
मनें-मनें कुछू सोचै-सोचै छै।
पुतों रो माथोॅ करलकै चुम्बन,
दौड़तें एैलोॅ,पकड़लकोॅ दामन।

छोड़ोॅ आबेॅ जा नुनू
नै-नै करै छै बेटा चुन्नू।
बाप एैलोॅ बेटा मांगै पानी,
देखोॅ आबी रहलोॅ छौं तोरोॅ नानी।
दौड़ी के करलकोॅ ‘‘संधि’’ नमन!
दौड़तें एैलोॅ,पकड़लकोॅ दामन।