भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गोहार / नवीन ठाकुर 'संधि'

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:01, 27 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन ठाकुर 'संधि' |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देखोॅ धरती होलै बीरान,
आवेॅ तोहें जागोॅ किसान

जैठ मास तबी गेलै,
केला, केतारी कुरथी मरी गेलै
करेॅ तोहेॅ एकरोॅ तजबीज
जे बचलोॅ-बचावोॅ बीज
छोड़ेॅ तोहें आपनोॅ विधान
देखोॅ धरती होलै बीरान,

जीव जंतु करेॅ गोहार,
जागोॅ किसान लंगोटिया यार।
वर्शा मास एैलेॅ अखार,
रिमझिम-रिमझिम झर-झर फुहार।
तोरेह पर छौं ‘‘संधि’’ के निदान,
देखोॅ धरती होलै बीरान,
आवें...