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लम्ही / भास्कर चौधुरी

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गाँव जिसके सरोवर का नाम
मुंशी प्रेमचंद सरोवर हो
और जिसके पानी का रंग
गाढ़ा हरा या काला हो
या अधिकांश हिस्सों का बदन फटा हो
या जिसके बहुत बड़े हिस्से को
गाँव भर के नाइयों ने
गाँव भर के बालों के निस्तार की जगह बना ली हो
गाँव वह–
जिसके हाई स्कूल का नाम
मुंशी प्रेमचंद हाई स्कूल हो
और गाँव की सीमा से लगाकालिज
मुंशी प्रेमचंद कालिज
गाँव का वोट
जातियों-धर्मों मेँ बंटा हो
जहाँ गाँव वाले नेताओं को
उनकी तस्वीरों से पहचानते हों
और गाँव के नेता उनके
पंच सरपंच या प्रधान हों
जिनके पेटों का व्यास
दो वर्षों मे दुगुना हो गया हो
और गालों के गढ्ढे पूरी तरह भर गए हों
भले ही ‘मनरेगा’ की सड़कें
बन के टूट टूट के बन और बन के टूट चुकी हों

गाँवों की कुछ लड़कियाँ
रोजाना कालिज जाने लगी हों
मनचले उनके आस-पास मंडराने लगे हों
और उनमें से किसी को भी प्रेमचंद की कहाँनियों की
इक्का-दुक्का शीर्षकों के नाम के अलावा कुछ याद न हो
भले ही गोदान की धनिया मौजूद हो गाँव में
और गोबर शहर गया तो लौटा न हो
तो वह गाँव प्रेमचंद का लम्ही गाँव ही है
जिसके बदलने की रफ्तार बैलगाड़ी की सी
जहाँ टीवी और मोबाइल ने चांदमारी कर ली है
और जहाँ लड़कियों का बाप
आधी उम्र पूरी करते-करते बूढ़ा हो जाता है
बच्चियों के लिए दहेज की रकम जुटाते-जुटाते
और माँ की रातों की नींद मानों
गौरया उड़ा ले जाती है अपने साथ
इस चिंता में कि बिटिया जीवित तो है
सास-ननदों की भेदती निगाहें
उसके गहनों को तौलती जो रहती हैं

प्रेमचंद की कहाँनियों के आगे कुछ बदला भी है तो
बदला नहीं है बहुत कुछ –
लम्ही गाँव का नाम लम्ही ही है
‘मुंशी प्रेमचंद सरोवर’की तरह
‘मुंशी प्रेमचंद गाँव’नहीं हुआ है अब तलक!!