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कवि! / भास्कर चौधुरी
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कवि!
कहाँ खड़े हो तुम
किसके पक्ष में
वे जो स्कूली बच्चे हैं
पत्थर फेंक रहे हैं
ढकें हुए हैं मुंह गमछे से
या वे जो
गोलियाँ चला रहे हैं
कल ही जिन्होंने पच्चीस जवानों को
भून दिया गोलियों से
उनके पक्ष में
कवि!
कहाँ खड़े हो तुम
किसके पक्ष में
वे जिनके हाथों में पकड़ाया गया है
वह पैलेट गन है
या जिनकी पैलेट गोलियों से
फूट गई दर्जनों किशोरों की आँखें
कवि!
कहाँ खड़े हो तुम
किसके पक्ष में
क्या उस सरकार के पक्ष में
जिसकी आँखों में जनता
हिंदू या मुसलमान है
राष्ट्रभक्त या देशद्रोही है
जिसकी चर्चा में मज़दूर किसान
दूर दूर तक नहीं है..
कवि!
कहाँ खड़े हो तुम
या खड़े नहीं
औंधे मुंह गिरे पड़े हो तुम
दबी हुई तुम्हारी ज़ुबान
पक्ष विपक्ष भूल गये हो तुम...