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निराशा / निमेष निखिल

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के भो बताऊ गाथमा उदास देख्छु म
औँसीको रातझैँ किन हतास देख्छु म
बर्सेका नीरले किन भिजे कठै नयन
आशा उडाई तर्कने बतास देख्छु म।