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अंग-सपूत / प्रदीप प्रभात
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हम्मेॅ अंग भूमि के वीर जवान,
उच्चोॅ हरदम्मेॅ हमरोॅ शान।
जानोॅ सेॅ बढ़लोॅ हमरोॅ हिन्दुस्तान,
गाय छी हम्मेॅ देश प्रेम के गान।
हमरा है तिरंगा पेॅ अभिमान
हेकरै पर छै तन-मन धन कुरबान।
वीर सिद्धो-कान्होॅ बड़ा महान,
हेकरोॅ छेलै अलगें शान।
काम करलकै हैरत-अंगेज,
जबेॅ एक समय रहै अंग्रेज।
अंग्रेजों के छेलें दुश्मन पक्का,
छुड़ाय देलकै होकरोॅ छक्का।
30 जून 1855 के फुँकलकै विगुल,
अंग्रेजोॅ बीच हुवेॅ लागलै शोरगुल।
भागलै आपनोॅ जान बचाय,
फूलोॅ-झानोॅ जबेॅ कुल्हाड़ी चमकाय।