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एक मुक्तक / लाखन सिंह भदौरिया
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सप्त शिशु वध कर चुकी थी, क्रूरता अहमन्य।
देवकी वसुदेव-सा, दुखिया नहीं था अन्य।
कंस कारा में पड़ी दृढ़ बेड़ियों के बीच-
मुक्ति को जिसने जना, उस देवकी वन्य