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आर्य वीरों से / लाखन सिंह भदौरिया
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1.
उषा खड़ी रक्त-अभिषेक करने के लिए,
खगों के स्वरों में सुनो जाग्रति की टेर है।
समय समीर झकझोर रही बार-बार,
दीर्घ सूत्रता में हुई येगों की अबेर है।
जब रहा तब रहा बुद्धि का ही फेर बन्धु,
झूठ बात है कि रहा काल का ही फेर है।
भाग का ही फेर बता, चादरें न तानों मित्र,
उठो-उठो, अरे अँगड़ाई की ही देर है।
2.
विश्व की निराश दृष्टि तुम को निहारती है,
नूतन प्रकाश भरो दीपक अमन्द का।
वेद का प्रकाश, चेतना की चन्द्रहास लिये,
गाते हुए गीत मीत सविता के छन्द का।
कूद पड़ो युद्ध हेतु तम की अनी को चीर,
ध्वस्त करो अनय अभाव व्यूह-द्वन्द का।
बाल बाँका कौन कर सकता है तुम्हारा बन्धु,
दायाँ हाथ शीश पर है ऋषी दयानन्द का।