अरुण उदय हुआ मगर / लाखन सिंह भदौरिया
अरुण उदय हुआ मगर, प्रकाश मिल सका नहीं।
ले गयी विदा निशा, निकल सकी नहीं किरन,
अभी स्वदेश व्योम पर, घिरे अपार विघ्न-घन,
अभी स्वदेश सिन्धु में, कुमुद कुभाग्य का खिला-
अभी स्वदेश भाग्य का सुकंज खिल सका नहीं।
अरुण उदय हुआ मगर, प्रकाश मिल सका नहीं।
मुक्ति मिल गयी, न मुक्त सांस हो सकी अभी,
तृप्ति मिल गयी, न तृप्ति प्यास खो सकी अभी,
जन-पपीह प्यास से विकल पुकारता अभी-
मगर जनेन्द्र मेघ का हृदय पिघल सका नहीं
अरुण उदय हुआ मगर, प्रकाश मिल सका नहीं।
अनीति अन्धकार का न आवरण हटा अभी,
न राष्ट्र के सुधार का प्रथम चरण उठा अभी,
अमिति अभाव के लिये, अभी मनुज सिसक रहा-
मगर व्यथा विषाद का पहाड़ हिल सका नहीं।
अरुण उदय हुआ मगर, प्रकाश मिल सका नहीं।
राम-राज्य-कल्पना, कलप रही पड़ी-पड़ी,
अमर शहीद-साधना सिसक रही पड़ी-पड़ी,
मगर विनाश हेतु वीर वाहिनी सजी खड़ी-
किन्तु मातु का विदीर्ण वक्ष सिल सका नहीं।
अरुण उदय हुआ मगर, प्रकाश मिल सका नहीं।