भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मंगळ में अमंगळ / विनोद कुमार यादव
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:30, 9 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पवन शर्मा |अनुवादक= |संग्रह=थार-सप...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
आम होवे का खास
तिखूंटी होवै या चौखूंटी
टूणां करयां बिन्या
मानै ई कोनीं कोई
मंगळ नें करै अमंगळ
थावर नें बरतै पावर
जाणै आ दुनियां
बां री ई है
अर बै रै’वणां चावै
फगत अकेला
पण बै
आ नीं सोचै
इण लूंठी अर ठाडी
दुनियां में
अेकला
रै‘सी कियां ?