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विसवास : दो / विरेन्द्र कुमार ढुंढाडा़
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विसवास
नीं थारो है म्हनै
नी म्हारो है थन्नै
पण हैं विसवास
आपां बिचाळै
जको जोड़ै आपां नै।
कुण भरै साख
आपणै विसवास री
आपां बिचाळै
आ थूं जाणै
का फेर जाणूं म्हैं
नीं थूं म्हनै बतावै
नीं बताऊं म्हूं
बतायां टूटै विसवास
डर है आपां नै
इणी कारण
जीवै विसवास
आपां बिचाळै।