भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विसवास : तीन / विरेन्द्र कुमार ढुंढाडा़
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:21, 9 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विरेन्द्र कुमार ढुंढाडा़ |अनुवा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
विसवास
नीं थारो है म्हनै
नी म्हारो है थन्नै
पण हैं विसवास
आपां बिचाळै
जको जोड़ै आपां नै।
कुण भरै साख
आपणै विसवास री
आपां बिचाळै
आ थूं जाणै
का फेर जाणूं म्हैं
नीं थूं म्हनै बतावै
नीं बताऊं म्हूं
बतायां टूटै विसवास
डर है आपां नै
इणी कारण
जीवै विसवास
आपां बिचाळै।