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हेत : अेक / विरेन्द्र कुमार ढुंढाडा़
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थारै म्हारै समेत
सगळा ढूंढै
खुद रा हेत।
हेत कद लाधै
निरवाळो
भेळा साधै
सगळा
हेत कथीजै
फगत सुवारथ
जे कोई
पाळै अेकलो।
हेत नै अरथावण
दूजो भी चाईजै
जको
पाळै सुपना
दूजै रा
टाळै खुद रा।
हेत तो
सांपड़ते ई
समरपण है
जे कोई करै।