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टुकुर-टुकुर ताकै छै। / कस्तूरी झा 'कोकिल'

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टुकुर-टुकुर ताकैॅ छै केवल कुछ नै बोले छॅ
पूछतें-पूछतें थकी जायछी मुँह नैं खोले छॅ।
भाँड़े-भाँडे़ जी दौडे़ छै
कुछ नैं पाबै छै।
ऐत्ते दिन कहियो नैं रूसलेहॅ
समझ नै आबै छै।
पालथी मारी केॅ बैठ ली छॅ, तनिकनों डोले छॅ।
टुकुर-टुकुर ताकैॅ छै केवल कुछ नै बोले छॅ।
ईरंग गुमसुम कब ताय रहभौ?
जे कुछ पूछभौं कुछ नैं कहभौ
की कारण छै बोलौॅ जल्दी
जे चाही से पूरा करभौं
हमें तोरे प्राण पियारोॅ कथीलेॅ तोले छॅ।
टुकुर-टुकुर ताकैॅ छै केवल कुछ नै बोले छॅ।
तोंय हमरा आँखी के पुतली
अब कहै नैं छतों प्रियरूस ली?
मारो मुस्की गला लगा बोॅ
गीत सुनाबॅ फेकॅ डफली।
आबी के झूलोॅ बांही में, कथी ले खौलैछॅ।
टुकुर-टुकुर ताकैॅ छै केवल कुछ नै बोले छॅ।
पूछते-पूछते थक्की जाय छी, मुह नै खोलै छॅ।

15/05/15 पांच बजे अपराह्न