भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दबाय दौड़ते / कस्तूरी झा 'कोकिल'

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:43, 13 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कस्तूरी झा 'कोकिल' |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कत्तेॅ पढ़बै कत्तेॅ लिखबै
माथोॅ घूमै छै।
रक्त चाप भागै छै ऊपर
धरती चूमै छै।
कत्तेॅ खैबै गोली बोलोॅ।
रुपया बूकै छै।
विरह ताप कहाँ सें भागतै?
कोय नैं बूझै छै।
अलट्रा साउन्ड की बतलैतै?
की देखैते एकसेरे?
यहाँ बीमारी कहीं और छै
बाढ़ै साँझ सबेरे।
बेसी दर्द रात में होय छै,
हलका सुबह सबेरे।
जहाँ अकेला सुतोॅ पटाबेॅ,
पत्थर काँटा बरसे।
केॅ डाक्टर छै आगू आबेॅ
कान में दवाय बतैबै।
तुरंत बीमारी भागतै हमरोॅ
नै खैबै खाली देखेवे।
पवन पुत्र केॅ कृपा हुयैतेॅ
स्वर्ग उठायं केॅ आनथिन।
आपनों दवाय हम्हीं पहचान बै,
हमरौ कहना मानधिन।
रोगी देखथैं दवाय दौड़तै,
रोगीं गलॉ लगैतै।
फुर्र सें भागतै सम्भे बीमारी
खुल-खुल दोनों हँसतै।

28/06/15 प्रातः पाँच बजे