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स्वप्न मिलन / कस्तूरी झा 'कोकिल'
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सपना तेॅ सपना होय छै जी।
जगला पर भागै छै।
माया वश भटकै छै प्राणी
तुरत पता लागै छै।
‘‘सपना आपनों कभी नैं होय छै।
गुरुवर हमरा कहनें छै।
विश्वास अमर छै लेकिन जग में
ऐहो बात बतौ नें छै।’’
अपना करनी केॅ फल प्राणी
निश्चय मानोॅ पाबै छै।
कोय दोसरॅ नें भागी होय छै,
नैं बदला में आबै छै।
तोरोॅ भाग्य चकाचक छैलौंह
हमरा जीतें स्वर्ग गेलेहँ।
हमरा सें परिजन केॅ हाथें
तुलसी गंगा जोॅल लेलेहॅ
हमरा जेनाँ राखथिन भोलाँ
तेनाँ प्रिय हे रहना छै।
जे कुछ कहथिन करम करै लेल
खुशी-खुशी सें कना छै।
तोंय छीकौह हमरोॅ प्रिय पत्नी
सभ्भें बात बताना छै।
आत्मा से आत्मा मिललॅ छै,
सातों कसम निभाना छै।
16/07/15 प्रातः 5.55 डॉ. आनन्द नारायण शर्मा