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तों भगवंती, हम भगवंतोॅ / कस्तूरी झा 'कोकिल'

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रही-रही केॅ याद पड़ै छै,
रोटी तोरोॅ गरम-गरम।
रसदार तरकारी प्रिय हे!
चाटी केॅ खां गरम-गरम।
‘‘घी तनीटा दीहौं वै में
आरोॅ अच्छा लागथौं जी।
चाखी केॅ देखौनें तनिगो,
फेरू-फेरू माँगभौ जी।
ई सब आबे केनाँक चलते?
अलग-अलग मरजादां छै।
बेटी, पोती आरो पुतोह केॅ
अलग-अलग दरजा छै।
तों भगवान्ती हम भगवन्तोॅ
बेटा, पोता लाग लोॅ छै।
पोती पुतोहुवेॅ आदर दे छै,
सुतलॅ छौ कि जागलोॅ छै।
बोरेॅ बीमारी होला पर जी।
जी-जान सेॅ दौडे़ छै।
डाक्टर लगाँ ले भागे छै।
सबरॅ हिरदैय हौंडे़ छै।
कोय भागै छै काली मंदिर
कोय बरफ पहुँचाबै छै।
कोय लागलॅ छै डाक्र पीछू,
कोय सूईया दिलबा बै छै।
बेटी, दामाद, नाती दौड़े छै,
नतनीं विदेश सें मुबाइल लगाबै छै।
नाना जी हो हाल बताबेॅ
अच्छा सुन हरसा बै छै।
साथी संगी सब आबै छै,
श्याम बराबर आबै छै।
बाहर बालाँ घंटा-घंटा
हालत पता लगाबै छै।
ऐ में भला बीमारी ठहरे?
दुम दबाय के भागै छै।
पारा-पारी बेटा पुतोहूँ
रात-रात भर जागै छै।
सेवा टहल करै छै सबनें
तोहें चिन्ता नै करिहेॅ
सपनोॅ में केवल आबी केॅ
हाल-चाल देखी जैहियॅ।
विरह ताप केनाँ के छुटतै-
धर्मराज सेॅ पूछौनीॅ।
मिलन दिवस कहिया छै।
चित्रगुप्त सेॅ पूछौनीं।
इंतजार करतें रहभौं जी?
लिखभौं कविता, गीत ग़ज़ल।
अंगिका, हिन्दी में लिखभौं
पढ़ी सुनैभों नयन सजल।
आबेॅ एहेॅ लिखलॅ छैजी,
बाँकी भाग सब भोगना छै।
माँगैछियोॅ शरण भगवान सें
आपनों इज्जत जोगनाँ छै।

19/07/15 रात्रि 8.40 बजे