दुनिया फीकी गलियाँ फीकी / कस्तूरी झा 'कोकिल'
दुनिया फीकी गलियाँ फीकी, फीका शहर बाजार छै।
तोंहीं नै तॅ फीका सब कुछ सुगंधहीन कचनार छै।
वन उपवान काटै लेल दौड़े।
काँटा भौंकै फुलवारीं।
भौरा केॅ गुनगुनगुन अनसो,
तितली रॅ नाथबों भारी।
तोहीं नै तॅ सुखली नदिया, सुख ली कली हजार छै।
दुनिया फीकी गलियॉ फीकी, फीका शहर बाजार छै।
तोंही नैं तॅ फीका सब कुछ सुगंधहीन कचनार छै।
बसंत में पतझड़ सन लागै?
गर्मी लू लगाबै छै?
बरसाँ घी के काम करै छै बिरह ताप धधकाबै छै।
दादुर, झिंगुर की बोली सेॅ फाटै प्रिये कपार छै।
दुनिया फीकी गलियॉ फीकी, फीका शहर बाजार छै।
तोंही नैं तॅ फीका सब कुछ सुगंधहीन कचनार छै।
हाड़ मांस रॅ देह नश्वर छै
नश्वर छै सुन्दरता
सच्चा प्यार अमर छै लेकिन
आकर्शक गुलदस्ता।
शिल्पी कारण शब्द अमर छै भाशा सरस प्रचार छै।
दुनिया फीकी गलियॉ फीकी, फीका शहर बाजार छै।
तोंही नैं तॅ फीका सब कुछ सुगंधहीन कचनार छै।
22/07/15 ब्रहममुहुर्त 3.20 बजे