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बिकल जिनगी / कस्तूरी झा 'कोकिल'

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र्मोन बौखे छै पागल नाँकी
तन चौकी पर पड़लॅ छै।
नयन निहारै तोरे फोटो
आँख, आँख सें लड़लॅ छै।
रोज-रोज केॅ ऐहेॅ कहानी।
उठते बैठते चलते जी।
नौं आबै छौ खाय लेल नीचे
दिनेॅ राती खैतेॅ जी।
असकल्लँ खाना नै भाबै,
गट-गट गीलै केॅ वश काम।
जे प्रसाद भेजै छै प्रभुजीं
खाय लेलाँ लेॅ हुनके नाम।
दबाय चबाबॅ पानी पीअँ
सूतै रॅ होय छै पैगाम।
पंखा चालू लाइट बुताबॅ
तारा गिनै रॅ अब काम।
नींद निगोड़ी कथील अयथौं?
चींटी चुटटी काटै छै।
मच्छड़दानी झूठ-फूस केॅ
मच्छड़ साहब डाँटें छै।
कथा कहानी केनाँ बदलतै?
तोरा बिना अयनेॅ जी?
दिन महीना बीतलेॅ जाय छै।
सुतलेॅ जागलेॅ खैनें जी।

23/07/15 अपराहन तीन पचास