भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भाग्यशालिनी / कस्तूरी झा 'कोकिल'

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:20, 13 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कस्तूरी झा 'कोकिल' |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कथा विरह केॅ अंतहीन छै,
कहाँ सेॅ शुरू करियै जी?
मोॅन पड़लेॅ छै, उधेड़ बुन मेॅ
केकरा पहिनें लिखिये जी?
रंग-रंग बात उठै छै मोॅन में
टपकै छै आँखीॅ सेॅ लोर।
नीन निगोड़ी भागी जाय छै,
उठतेॅ बैठतेॅ होय छै भोर।
तीसोॅ दिन येन्हैं बीतै छै,
केकरा कही सुनैबै जी?
लाज गरान अलगे लागै छै
कत्ते लोर छिपैबै जी?
कखनीं सुतबै, कखनीं जागबै?
ई तॅ कहना मुश्किल छै।
कखनी नहैबै, कखनी खैबैं?
ई बतलाना मुश्किल छै।
सुबह, दुपहर, सांझ बीतै छै,
नैं छै कोनोॅ लिखलॅ काम।
रात डाकिनी हपकै छै जी
मूहों सेॅ निकलै हे राम।
तोहें तेॅ भवसागर तरलेहॅ
छोड़लेहॅ यहाँ पति-परिवार।
भाग्यशालिनी सदा सुहागिन,
महिमा गाबै छै संसार।

31/07/15 अपराहन साढ़े चार बजे