भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जब सें गेलहौ / कस्तूरी झा 'कोकिल'

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:58, 13 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कस्तूरी झा 'कोकिल' |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तोहें जब सें गेलहौ,
खुशियाली साथै गेलै।
तोहें जब सें गेलहौ
हरियाली साथै गेलै।
तोहें जब सें गेलहौ
होली साथै गेलै।
तोहें जब सें गेलहौ
दीवाली साथै गेलै।
तोहें जब सें गेलहौ
शहनाई साथै गेलै
तोंहें जब सें गेलहौ
पहनाई साथै गेलौ
तोहें जब सें गेलहौ
अरमान साथै गेलै।
तोहें जब सें गेलहौ
मुसकान साथै गेलै।
सुबह साँझ देखै छीहौॅ
लाले लाल बिंदिया।
फुनगी पर चहकै छै।
चिड़ा आरो चिड़िया।
कबे कहाँ मिलभौ तों?
एतनंे बताय देऽ।
हमहूँ वहीं आबी जैभौं
गला सें लगाय लेऽ।

होलिका दहन (अगजा) दिनांक 22/03/16