भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आना-पाई हिसाब आया है / आनंद कुमार द्विवेदी
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:21, 17 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आनंद कुमार द्विवेदी |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मेरे हिस्से अज़ाब आया है
और उनपे शबाब आया है
एक क़तरा भी धूप न लाया
बेवजह आफ़ताब आया है
पहले खत में नखत निकलते थे
बारहा माहताब आया है
खुशबुएँ डायरी से गायब हैं
हाथ, सूखा गुलाब आया है
मुझको इंसान बुलाना उनका
क्या कोई इंकलाब आया है
अब वहां कुछ नहीं बचा मेरा
आना-पाई हिसाब आया है
मेरा मुंसिफ मेरे गुनाहों की
लेके मोटी किताब आया है
पहले ‘आनंद’ था ज़माने में
धीरे-धीरे हिज़ाब आया है