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मजदूर माँ / मुकेश नेमा

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धधकती दुपहरी
खडी सतर
तरबतर पसीने से
लिये पनीली आँखें
निहारती
माँ मजदूरन
रेंगती सड़क पर
गोद के लिये
आ प्रस्तुत
बिटिया को!

बाधा है बड़ी
कड़ी धूप और
माँ के आँचल के बीच
चाहिये अनुमति
निष्ठुर इँटों से
लदी है जो सर पर

जानता हूँ मैं
जानती है
वह विवश माँ भी
रह जाना है अनसुनी
यह अनकही याचना!

बिटिया को
होना होगा बडा
बिना चढ़े गोद
अनुचर होगी वह भी
धूप और ईटों की
अगली पीढ़ी की!