भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भरोसे की बात / मुकेश नेमा

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:18, 21 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश नेमा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लगता है क्यों
हँसी वह तुम्हारी
जो नहीं सुन सका
परे कर उदासी के
ठंडे बादलों को
होगी कुनकुनी
दमकते सूरज सी

क्यो हो चला ऐसा
छवि तुम्हारी अनदेखी
करती है आश्वस्त
विपन्न मेंरे मन को
खनकती गुल्लक सी

भरोसा क्यो है!
सैर पर मिलती सुबह की
अपरिचित उष्ण स्मित सी
रहोगी सदैव उपस्थित
मेंरे जीवन में तुम