भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बनी रहती है बेटियाँ / मुकेश नेमा

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:38, 21 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश नेमा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बेटियाँ कभी
नहीं होतीं विदा
देहरी से मायके की
रहती हैं बनी सदैव
आत्मीय मन और
निर्दोष प्रेम के साथ
लिये शुभता
महकते चंदन सी
पूजा घर में
पुरानी किताबों में
छोटी बहन से
साझा कमरे में
चिन्ताओं में माँ की
पिता के गर्वित चेहरे में
सझां आरती सी
प्रीतिकर बेटियाँ
हमेंशा यहीं रहें
बनी रहें
घर में माँ के
घर में अपने
क्योकि बंसत सी
बेटियों का होना
ही है आश्वासन
अगले दिन की
उजली धूप का
इस भरोसे का
कि वे हैं तो
बनी रहेगी
रहने लायक
दुनिया भी