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इँजोर (कविता) / नवीन ठाकुर ‘संधि’
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राजा चोर परजा चोर,
के करतै देश इँजोर?
नै भेजै-छै बीछी चुनी केॅ
नै मनोॅ में सोची-समझी गुनी केॅ
जनता दै-छै समर्थन,
आँख मुनी के
पीछूँ पछताय छै, माथोॅ धूनी केॅ,
संसद में छुच्छेॅ शोर-शोर
राजा चोर परजा चोर,
तोॅय चोर, हम्मेॅ चोर
सँच्चे में सब चोर चोर
केॅ करतै देश इँजोर?
जब तक चलतै जन-जन में घूस,
तब तालूक चुनाव होतै झूठ-फूस,
लेन-देन में छै सब्भेॅ-सब्भेॅ खुश,
फरार करी करार "संधि"
पीन्है छै मुकुट मोर,
भरलो निराशा कोरंम-कोर,
राजा चोर परजा चोर
के करतै देश इँजोर?