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दिवालिया / नवीन ठाकुर ‘संधि’
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आय दिवाली कल दिवालिया
जैन्होॅ चमकै काली घटा बिजुलिया
रीन खायकेॅ रीन लगावोॅ,
घरोॅ-घरोॅ सें महतोॅ कहावोॅ।
खेलोॅ जुआ चाहे गाय गोरू बिकावोॅ,
तयोॅ गामोॅ में आपनोॅ नाम कमावोॅ।
बाँकी छै बिकै लेॅ आरो बकरिया,
आय मिललोॅ छोॅ सबटा खेल-खेलाड़ी,
मोॅन भरी खेलोॅ जुआ-जुआरी।
सालोॅ में आबै छै एक्के दाफी दिवाली,
बीचोॅ-बीचोॅ में मांस मदिरा के प्याली।
चाहे बिकी जाय कोरोॅ-कंडी लकड़िया,
कखनू नै मारियोॅ एकरा में दम,
चाहे पैसा बेशी रहेॅ आकि कम।
फिकिर की बैठलोॅ छै महाजन,
है मौका नै एैतोॅ हरदम।
बिकेॅ चाहे "संधि" जगह जमीन बहुरिया,
जैन्होॅ चमकै काली घटा बिजुलिया।