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छूछोॅ हाथ / नवीन ठाकुर ‘संधि’

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की कहबोॅ युगोॅ रोॅ कहानी,
कुछूँ नै बचलोॅ इज्जत पानी।
 
बड़का छोटका रोॅ कुछूँ नै भेदभाव,
जेकरा समझाभेॅ ओकरा सें लेल्हे दुःश्मनी घाव।
इज्जत बचाना छौं तेॅ मत दोॅ केकरौह बोलै रोॅ दाव,
दम धरी केॅ रहोॅ नै तेॅ डूबी जैतोॅ नाव।
घोर-बहार सकठेॅ कोचवात सुनोॅ समझोॅ पिहानी,

जब्बेॅ तक पैसा कौड़ी रहतोॅ तोरोॅ हाथोॅ में,
गोड़ै लेॅ रहतोॅ आगू-पीछूँ तोरोॅ साथोॅ में।
तोरें पैसा तोराय खिलैतोॅ काजू किसमिश पिस्ता,
खूब बनाय केॅ राखतोॅ तोरा सें रिस्ता।

खाली हाथोॅ लात मारै छेॅ बेटा पुतौहेॅ जनानी,
कुछूँ नै बचलोॅ इज्जत पानी।
जिन्दा में केकरोॅ नै होय छै नाम,
शहर कसबा रहै कि बड़का छोटका गाम।
जल्दी-जल्दी श्राद्ध करै लेली खूब्भेॅ बढ़ाय छै पॉव,
क्रिया करम पूरला रोॅ बादे "संधि" खोजै छै शांति रोॅ छाँव।