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मिलन / अशोक शुभदर्शी

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हुअे पारै छोॅ
तोंय जबेॅ आबोॅ हमरा सें मिलै लेॅ
हम्मेॅ मिलिहौं तोरा
कोनोॅ खंडहर
कोनोॅ सूखलोॅ वृक्ष
या कंकाल केॅ रुपोॅ में

लेकिन तोंय डरी नै जैहियौं
हमरोॅ ई तरह केॅ कोय रुप देखी केॅ

तोरा मिलै लेॅ पारै छेॅ
हमरोॅ यहेॅ कोनोॅ रुप
तोरोॅ आशा के अनुरुप
हमरोॅ जीवंतता

तोंय ढूढ़ियोॅ हमरोॅ ऊ जीवंतता
हमरोॅ वहेॅ रुपोॅ में
जेकरा पावै लेॅ तोंय पागल छेल्होॅ कहियोॅ
मानी लेॅ तोंय बहुतेॅ देर करी देभौ आवै में
तहियोॅ
हम्में बचाय केॅ राखभौं
आपनोॅ वहेॅ जीवंतता
तोरा वास्तें
जेना केॅ भी हुअे पारतै ।