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नमस्कार स्वीकारोॅ / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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ई एक सिलसिला छेकै-
शब्दोॅ के ;
एक लम्बा,
नै खतम होय वाला बहसोॅ के
जे -
नै जानौं कहिया सें चली रहलोॅ छै !
लेकिन खत्म नै होय छै।
ई खाई,
ई दूरी,
जेकरा हम्में सभ्भैं मिली केॅ
बनैनें छियै ;
के एकरा भरतै ?
यहाँ तेॅ
इन्कलाब में उठै वाला गर्दन केॅ
बर्बरीक बनाय देलोॅ जाय छै !