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भयभीत लोग / मनोज चौहान

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एक क्रीड़ा की तरह
वे खेल रहे हैं ‘क्रांति’
बिना जाने ही
इस शब्द के सही मायने
यथार्थ व आत्मबोध से
वे कोसों दूर हैं।
  
कर देना चाहते हैं
मनमाफिक बदलाव
चिन्हित कर बैठे हैं समाज में
अपने अनेक दुश्मन
पोषित कर रहे हैं
अपने ही भीतर
संकीर्णता की ग्रंथि को।

मगर क्या ये लोग सच में
हितकारी हैं उन लोगों के
जिन्हें वो चटाए हुए हैं
खोखली समरसता का शहद
और उलझाये हुए हैं
इतिहास के फर्जी
पोस्टमार्टम में।

समाज की बेहतरी के लिए
जरुरी है
स्वाभिमान को जगाना
कुंभकर्णी नींद से।

वैशाखियों के सहारे
याचक बन
ठूठा लिए गिड़गिड़ाकर
नहीं जलती वो मशालें
जो जीत ले अँधेरे को।
ये तारणहार नहीं
न ही हैं हितैषी किसी के
बल्कि भयभीत लोग हैं
जो चाहते हैं संक्रमित कर देना
समाज को भी
अपने भीतर के डर से।

ताकि पनप सके
विष बेल वैमनस्य की
इनके अनुयायियों के भीतर
और मिलती रहे संजीवनी
उनके बर्चस्व को!


ठूठा – यह हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला में प्रयोग होने वाला एक आंचलिक शब्द है, जिसका अर्थ ‘भिक्षापात्र’ है।