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राज के बात राजधानी मेॅ / कैलाश झा ‘किंकर’
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राज के बात राजधानी मेॅ ।
एक जजबात आग-पानी मेॅ ।।
केकरोॅ के मीत छिकै के जानै,
पीर गम्भीर छै कहानी मेॅ ।
भोर जुटलै तें सांझ टुटलै भी,
तख्त डोलै छै कूद-फानी मेॅ ।
गाँव के गाँव जरै छै लेकिन,
कुच्छू चिन्ता नै राज-रानी मेॅ ।
एक कुर्सी सेॅ मुसलसलत ‘किंकर‘
शांति रहलै नै जिन्दगानी मेॅ ।