भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
याराना जब पत्थर से / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:06, 26 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह=द्वार...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
याराना जब पत्थर से
क्या घबराना ठोकर से
लौट नहीं अब आयेगा
निकला है अपने घर से
कट जायेगा फूलों-सा
बतियाता है खंजर से
भीतर-भीतर आग दिखा
बर्फ था जितना बाहर से
नदी गाँव की याद आई
मिल आया जब सागर से
कल तक जीवन को तरसा
मौत की खातिर अब तरसे
जीने का ढंग जान गये
मिले थे क्या अमरेन्दर से।