भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
च्यार अचपळा चितराम (1) / विजय सिंह नाहटा
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:42, 26 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय सिंह नाहटा |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कठै ई दूर बिरखा है
डूंगर री गम्योड़ी चोटी सी
धवळा बादळ री हलचल
अंतहीण ओ दीठाव
सूंत‘र ले जावै सम्मोहण में
ऊपर चोटी माथै
अरे! ओ कैड़ो उच्छाव है
उपराड़ै रो।