Last modified on 26 जून 2017, at 16:33

माँ / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:33, 26 जून 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

 
 तुम्हीं मिटाओ मेरी उलझन
 कैसे कहूँ कि तुम कैसी हो
 कोई नहीं सृष्टि में तुमसा
 माँ तुम बिल्कुल माँ जैसी हो।

 ब्रह्मा तो केवल रचता है
 तुम तो पालन भी करती हो
 शिव हरते तो सब हर लेते
 तुम चुन चुन पीड़ा हरती हो
 किसे सामने खड़ा करूँ मैं
 और कहूँ फिर तुम ऐसी हो।

 ज्ञानी बुद्ध प्रेम बिन सूखे
 सारे देव भक्ति के भूखे
 लगते हैं तेरी तुलना में
 ममता बिन सब रूखे रूखे
 पूजा करे सताये कोई
 सब की सदा तुम हितैषी हो।

 कितनी गहरी है अद् भुत सी
 तेरी यह करुणा की गागर
 जाने क्यों छोटा लगता है
 तेरे आगे करुणा सागर
 जाकी रहि भावना जैसी
 मूरत देखी तिन्ह तैसी हो।

 मेरी लघु आकुलता से ही
 कितनी व्याकुल हो जाती हो
 मुझे तृप्त करने के सुख में
 तुम भूखी ही सो जाती हो
 सब जग बदला मैं भी बदला
 तुम तो वैसी की वैसी हो।

 तुम से तन मन जीवन पाया
 तुमने ही चलना सिखलाया
 पर देखो मेरी कृतघ्नता
 काम तुम्हारे कभी नआया
 क्यों करती हो क्षमा हमेशा
 तुम भी तो जाने कैसी हो
 माँ तुम बिल्कुल माँ जैसी हो।