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पक्षियों जैसा आदमी / अमरजीत कौंके

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साँझ ढले
वह घने पेड़ों के पास आता
साईकिल से उतर कर
हैंडल से थैला उतारता
घँटी बजाता

घँटी की टनाटन सुन कर
पेड़ों से उड़ते
छोटे-छोटे पक्षी आते
उसके सिर पर
कुछ उसके कँधें पर बैठ जाते
कुछ साईकिल के हैंडल पर
जैसे दावत खाने के लिये
आन सजते शाही मेहमान

वह अपने थैले में से
दानों की एक मुट्ठी निकालता
अपनी हथेली खोलता
पक्षी उसके हाथों पर बैठ कर
चुग्गा चुगने लगते
चहचहाते
उसके हाथ उन के लिए
प्लेटें जैसे
शाही दावत वाली
सोने चांदी की

चुग्गा चुग कर
पक्षी उड़ जाते
वह आदमी खाली थैला
हैंडल से लटकाता
घँटी बजाता
चला जाता

हैरान होता देख कर मैं
पक्षियों की यह अनोखी दावत
 
कितना सुखद अहसास है
ऐसे समय में
परिंदों को चुग्गा चुगाना

लेकिन पक्षियों को
हथेलियों पर चुग्गा चुगाने के लिये
पहले खुद पक्षियों जैसा
पड़ता है होना।