बस में गीत गाती लड़की / अमरजीत कौंके
बस में हाथ जोड़ कर खड़ी
एक छोटी सी लड़की
गीत गा रही है...
उसको
अपने गीत पर
कितना भरोसा है
कि यात्रियों के
अनदेखा करने
कंडक्टर के झिड़कने
और बस में उठ रहे
शोर-गुल से बेपरवाह
वह छोटी सी लड़की
अपनी ही धुन में
गीत गाए जा रही है...
उसको
अपने गीत पर कितना भरोसा है
कि इस समय में
जब दो कौर रोटी के लिये
वह बहुत सारे काम
कर सकती है
किसी की जेब काट सकती है
भीख माँग सकती है
देह बेच सकती है
या और ऐसा बहुत कुछ
जो करने से उसे
आसानी से इससे
ज्यादा पैसे मिल सकते हैं
लेकिन उसे अपने गीत पर
कितना भरोसा है...
गाती हुई
उस छोटी सी लड़की का चेहरा
इतने आत्म-विश्वास से भरा है
कि लगता है उस के लिए
गीत गाना ही
दुनियाँ का सब से पवित्र
और सबसे महान काम है
यकीन है उसको
कि उसके गाए गीत
उसके लिए और उसके परिवार के लिए
शाम की रोटी का सहारा बनेंगे
उसकी बीमार माँ के लिए
दवा का जुगाड़ करेंगे
इसीलिये वह
अद्भुत विश्वास से भरी
गीत गा रही है...
गीत खत्म हो गया है
वह यात्रियों के आगे हाथ बढ़ाती
धीरे धीरे चलती
भीख नहीं
जैसे अपनी कला का
मोल मांगती है
उस की हथेलियों पर
सिक्के रखते हैं लोग
उसकी आँखों में
आत्म-विश्वास
और चमक उठता है
मेरे पास से गुज़रने लगती जब वह
मैं भी उसकी हथेलियों पर
बहुत अदब से रखता हूँ पैसे
उसकी उम्मीद से कहीं अध्कि
यह सोच कर
कि उसका अपने गीतों पर
विश्वास बना रहे
उसका
यह विश्वास हो और पक्का
कि इस समय में
जहाँ दो कौर रोटी के लिए
लोग कर रहें हैं लूटपाट
काट रहे हैं जेबें
बेचे जा रहे हैं जिस्म
उस दौर में भी
एक छोटी सी लड़की
कमा सकती है
साँझ की रोटी
बस में गीत गा कर...
बना रहे उसे
अपने गीतों पर यकीन...।