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बन रही है नई दुनिया (कविता) / अमरजीत कौंके

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दौड़ी जा रही है
ऊँचे-ऊँचे पुलों पर दुनिया
वातानुकूलित बड़ी-बड़ी कारों में
शीशे बंद किये हुए
उड़े जा रहे हैं लोग

बन रही है नई दुनिया
नये लोग
नये नये मीलों लँबे
पुल तीमार हो रहे हैं
पुल ही पुल
बन गए हैं
बड़े-बड़े ऊंचे ऊंचे
लोगों के लिए
ताकि
पृथ्वी की भीड़
उनकी राह में
बाधा ना बने

नहीं रुक सकते वो
रेलवे फाटकों पर
टाईम बहुत कीमती है
उनका
नहीं चल सकते वो
साईकिलों, रेड़ियां, गाड़ियों
रिक्शों की भीड़ में
जहाँ गरीब लोग
अभी भी फँसे
चीख रहे हैं
अपनी-अपनी
बारी के इंतज़ार में
 
ऊँचें-ऊँचे लंबे पुलों पर
उड़े जा रहे हैं अमीर लोग

और इन्हीं पुलों के नीचे
कीड़ों की तरह
कुलबुला रही है
गरीब जनता।