अनछुआ होंठ / अमरजीत कौंके
असल में
जितनी उसकी उम्र थी
उसके होंठ की उम्र
उससे कहीं अधिक छोटी थी
उसके प्रौढ़ चेहरे पर
उसका अनछुआ होंठ
अलग से नज़र आता था
ध्यान से देखने पर लगता था
जैसे इशारे कर-कर के बुलाता था
आधी उम्र पार कर चुकी
वह औरत हैरान थी
कि एक आदमी के साथ उसने
उम्र के कितने बरस गुज़ार दिए
कितने दशक उसके साथ सोती रही
उसकी छाया में घूमती रही
पति उसका हर रोज़
उस के साथ सोता रहा
बच्चे पैदा करती रही वो उसके
पढ़ाती रही
घर की जिम्मेदारियाँ
निभाती रही
लेकिन उसके पति को
अपनी पत्नी के अनछुए होंठ का
इल्म नहीं था
कितने ही अंग थे
जो उसने पास लेटी पत्नी के
कभी देखे ही नहीं थे
अँधेरे में हमेशा वह
उसके साथ सोता तो रहा
लेकिन सिर्फ बच्चों की उत्पत्ति के लिए
या खुद को खलास करने के लिए
आधी उम्र बिता चुकी
उस औरत ने
अचानक एक दिन
ध्यान से आईना देखा
आईने में उसने
अनछुआ अपना होंठ देखा
कसा हुआ
अपना जिस्म देखा
उसके भीतर से अचानक
एक आह निकली
और वह फिर अपने
यौवन में लौट गई
जहाँ सब कुछ
अनछुआ था
जहाँ सब कुछ
जवान था।