भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिल करता है / अमरजीत कौंके
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:42, 26 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरजीत कौंके |अनुवादक= |संग्रह=बन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
दिल करता है
सब को मना लूँ
जिनके साथ
जाने-अनजाने
गुस्ताखियाँ कीं
अपने अहं में डूबकर
जिनको बुरा भला कहा
प्यार में
जिनके साथ लड़ता रहा
फिर मुँह फेर लिया
दिल करता है
उन सब को मना लूँ
बहुत दोस्तों का
सिर पर क़र्ज़ चढ़ा
क़र्ज़ मोहब्बतों का
क़र्ज़ दोस्ती का
क़र्ज़ रिश्तों का
क़र्ज़ स्नेह का
दिल करता है
सबको ब्याज समेत
धीरे धीरे
लौटा दूँ
अपनी सारी बदी
अपना सारा अहं
मुहब्बत की नदी में
बहा दूँ
बहुत सारी नदियाँ
जो मन में बहतीं
रूठ कर दूर गईं
उनको बताऊँ
कि कैसे उनके बिना
मेरे मन का समुन्दर
रेत-रेत हो गया
कैसे बूँद-बूँद सागर
मेरे नयनों में से बह गया
बीत गए पल
लौटते तो नहीं चाहे
लेकिन फिर भी
दिल करता है
रूठ गए जो
धीरे धीरे
सबको मना लूँ...।