भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भटकन / अमरजीत कौंके

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:34, 27 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरजीत कौंके |अनुवादक= |संग्रह=बन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हें पकड़ने के लिए
मैं कभी इधर
कभी उधर
भटकता हूँ

तुम परछाई की तरह
कभी इधर
कभी उधर दिखती
लुप्त हो जाती

तुझे पकड़ने की
इच्छा में ही
शायद मेरी सारी भटकन
छुपी हुई है

काश
मुझे पकड़ने का नहीं
छोड़ने का ढंग आता

इस तरह ही शायद
मैं तुम्हारी याद को
छल पाता...।