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सबको सब से भय-डर है / आभा पूर्वे

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सबको सब से भय-डर है
यही कथा तो घर-घर है।

अपवादों की बात अलग है
बाकी तो दिल पत्थर है।

क्या वसन्त ही आया, जबकि
साथ ना लाया मंजर है।

यहाँ प्रजा क्या, चीतल जैसी
सम्मुख शासन-अजगर है।

सत्ता आगे न्याय नीति को
मैंने देखा थरथर है।

मैं भी उसको जान रहा हूँ
बोल रहा जो हर-हर है।

मेरा रुदन कोई ना जाने
ढोल, मंजीरा, झांझर है।