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जीवन की बातें अनजानी / गिरधारी सिंह गहलोत

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जीवन की बातें अनजानी
दिल मेरा क्या क्या कहता है
       
चहुँ और है दुःख का सहरा
पीड़ाओं का कूप है गहरा
निपट हताशा और निराशा
देती जाये निरंतर पहरा
दीन हो रहे दीन निरंतर
खौफ छा रहा मन के अंदर
नित्य अभावों से है नाता
अश्रु का है एक समंदर
भूख प्यास बैचैन कर रही
आकांक्षाएं रोज मर रही
कुदरत जो करती मनमानी
मूक बधिर होकर सहता है
     
जीवन की बातें अनजानी
दिल मेरा क्या क्या कहता है
     
कन्धों पर वो लाश लिये है
जाने कैसे पाप किये हैं
सड़कों पर पैदल चलता है
कड़वे कितने घूँट पीये है
आखों में नीरवता छाई
कल तक थी उसकी परछाईं
साथ जो उसका छोड़ चली है
कैसी निर्मम हुई विदाई
इंसानों की ये दानवता?
कहाँ खो गई है मानवता?
दर्द भरी सुनके ये कहानी
मानव कैसे चुप रहता है?
      
जीवन की बातें अनजानी
दिल मेरा क्या क्या कहता है
     
दहशत के नूतन समीकरण
यहाँ फिरौती वहाँ अपहरण
दुर्घटनाओं के रूप में अब तो
मौतों का कब कहाँ अवतरण
चोरी जेबतराशी डाका
नफरत का बनता इक नाका
बाकी अब जो बचा रह गया
लूटे भ्रष्टाचार के आका
राजनीति के वादे झूठे
नेता कहते बोल अनूठे
मन में उठती आग, अजानी
पीर का इक दरिया बहता है
     
जीवन की बातें अनजानी
दिल मेरा क्या क्या कहता है