भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुड़क-तुड़क तुड़ंग तूं / ओम पुरोहित ‘कागद’

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:34, 28 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’ |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सयाळै री रातां
ओढूं सिरख
बिछाऊं पथरणों
गुद्दी हेठै सोरफ सारु
धरूं तकियो
ढाबूं पौ री ठारी!

आधी सी रात
कानां में पड़ै
पींजणैं री आवाज
तुड़क-तुड़क तुड़ंग तूं
अचाणचक खुलै आंख
साम्हीं पण कीं नीं
म्हैं सिरख-पथरणैं
तकियै री रूई सम्भाळूं
हाल ठीक ठाक है
आंख मीचूं
पाछी नींद उतरै
नींद में आवै
हेला उपाड़तो
कमरद्दीन पिंजारो
रूई पिंजाल्यो!
रूई पिंजाल्यो!!

म्हैं उठ'र बैठूं
यादां में फिरै पिंजारो
गळ्यां सूं कद होग्यो
साव अदीठ
सोचूं
कांई होयो होसी
कमरद्दीन रो
उण री टाबरी रो
कळां पछै
म्हारै तो सोरफ है
कंवळा भरै कळां
सिरख-पथरणां-तकिया
बठै कियां
भरीजतो होसी पेट!