भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रेत रो हेत / ओम पुरोहित ‘कागद’

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:01, 28 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’ |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुण कैवै
उडण सारु पग
भोत जरूरी है
देखो भंवै है नीं
बिना पग पांख
आखै जग में
पाणीं सोधती रेत
जठै मिलै
बठै ई बैठ जावै
बांथ घाल'र जळ रै
रेत ई पाळै
जळ सूं हेत
बिना पग-पांख!