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तुम भी उलटे लटको! / कन्हैयालाल मत्त
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उल्लू जी ने ब्याह रचाया,
कौए बने बाराती,
चमगादड़ उनके स्वागत में
'कैं-कैं' रही सुनाती।
कौए बोले-'चमगादड़ जी,
भोजन-राग सुनाओ,
सबको दावत मिले चकाचक,
ऐसी ताल लगाओ।'
चमगादड़ ने कहा-'बंधुओ,
है यह कठिन समस्या,
आज तुम्हें करनी ही होगी,
भूखे-पेट तपस्या।
उल्लू जी उजाड़वादी हैं,
समझो इस संकट को,
मैं खुद उलटी लटक रही हूँ,
तुम भी उलटे लटको!'