Last modified on 28 जून 2017, at 16:30

तुम भी उलटे लटको! / कन्हैयालाल मत्त

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:30, 28 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैयालाल मत्त |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

उल्लू जी ने ब्याह रचाया,
कौए बने बाराती,
चमगादड़ उनके स्वागत में
'कैं-कैं' रही सुनाती।

कौए बोले-'चमगादड़ जी,
भोजन-राग सुनाओ,
सबको दावत मिले चकाचक,
ऐसी ताल लगाओ।'

चमगादड़ ने कहा-'बंधुओ,
है यह कठिन समस्या,
आज तुम्हें करनी ही होगी,
भूखे-पेट तपस्या।

उल्लू जी उजाड़वादी हैं,
समझो इस संकट को,
मैं खुद उलटी लटक रही हूँ,
तुम भी उलटे लटको!'