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रबड़ की चिड़िया / कन्हैयालाल मत्त
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मैंने सुंदर चिड़िया पाली,
रंग-बिरंगी, भोली-भाली।
रखती थी थी चुनमुन-सी आँखें,
चंचल और गुलाबी पाँखें।
चूँ-चूँ, चूँ-चूँ भी करती थी,
कभी न बिल्ली से डरती थी।
कभी न खाती, कभी न पीती,
फिर भी रही साल-भर जीती।
कभी नहीं उसने फड़-फड़ की,
वह चिड़िया थी क्योंकि रबड़ की!