भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

डंडा-डोली पालकी! / कन्हैयालाल मत्त

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:35, 28 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैयालाल मत्त |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

डंडा डोली पालकी,
जय कन्हैयालाल की!

आगे-बागे टूल के,
झाँझ-मँजीरे कूल के,
शंख समंदर-कूल के,
ढपली धुर बंगाल की!
जय कन्हैयालाल की!

कमर करधनी काँस की,
वंशी सूखे बाँस की,
जिसमें जगह न साँस की,
झाँकी बड़े कमाल की!
जय कन्हैयालाल की!

माखन-मिसरी घोलकर,
मन-भर पक्का तोलकर,
खाते हैं दिल खोलकर,
रबड़ी पूरे थाल की!
जय कन्हैयालाल की!